स्मृति का अर्थ है “याद रखना” या “स्मरण”। यह वेदों से व्युत्पन्न ग्रंथ होते हैं जो समाज के आदर्श जीवन, नियम और धर्म का व्यावहारिक रूप प्रस्तुत करते हैं। जबकि वेदों को श्रुति कहा जाता है, स्मृतियाँ मनुष्यों द्वारा रचित होती हैं और इनमें वेदों के सिद्धांतों और शिक्षाओं का समाज में अनुसरण करने के तरीकों पर प्रकाश डाला गया है।
स्मृतियाँ वेदों की व्याख्या करती हैं और समाज के हर स्तर पर उनका पालन सुनिश्चित करने के लिए नियम और विधियाँ निर्धारित करती हैं। वे समाज को आचार-व्यवहार, धर्म और न्याय के नियमों के अनुसार अनुशासित करने का कार्य करती हैं।
स्मृतियों का समाज में बहुत बड़ा स्थान है क्योंकि ये हमें वेदों के सिद्धांतों को व्यवहारिक रूप से जीवन में उतारने का मार्गदर्शन देती हैं। इससे समाज में अनुशासन, न्याय और धर्म का पालन होता है।
1. स्मृति: स्मृतियाँ वेदों के व्यावहारिक रूप में रूपांतरित कृतियाँ हैं जो समाज के नियम, आचार और धार्मिक व्यवस्था को स्थापित करती हैं।