स्मृति  

स्मृति का स्वरूप:

स्मृति का अर्थ है “याद रखना” या “स्मरण”। यह वेदों से व्युत्पन्न ग्रंथ होते हैं जो समाज के आदर्श जीवन, नियम और धर्म का व्यावहारिक रूप प्रस्तुत करते हैं। जबकि वेदों को श्रुति कहा जाता है, स्मृतियाँ मनुष्यों द्वारा रचित होती हैं और इनमें वेदों के सिद्धांतों और शिक्षाओं का समाज में अनुसरण करने के तरीकों पर प्रकाश डाला गया है।

स्मृतियों का उद्देश्य:

स्मृतियाँ वेदों की व्याख्या करती हैं और समाज के हर स्तर पर उनका पालन सुनिश्चित करने के लिए नियम और विधियाँ निर्धारित करती हैं। वे समाज को आचार-व्यवहार, धर्म और न्याय के नियमों के अनुसार अनुशासित करने का कार्य करती हैं।

स्मृति की प्रमुख ग्रंथ:

  1. मनुस्मृति: यह सबसे प्रसिद्ध स्मृति है, जिसमें समाज के विभिन्न वर्गों के कर्तव्यों (ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र) और जीवन के नियमों का स्पष्ट वर्णन है। इसमें धर्म, न्याय, दंड और विवाह जैसे विषयों पर विस्तृत चर्चा की गई है।
  2. याज्ञवल्क्य स्मृति: यह भी एक महत्वपूर्ण स्मृति है, जिसमें वेदों के कर्मकाण्डों, धर्म, न्याय, और धार्मिक आस्थाओं के बारे में निर्देश दिए गए हैं।
  3. नारद स्मृति: इस स्मृति में धार्मिक और सांस्कृतिक आचारों, राजा के कर्तव्यों, और न्याय के सिद्धांतों का वर्णन है।
  4. धर्मशास्त्र: अन्य कई धर्मशास्त्रों में जीवन के विभिन्न पहलुओं जैसे उत्तराधिकार, दंड, विवाह, और समाज के नियमों पर चर्चा की गई है।

स्मृतियों का समाज में महत्व:

स्मृतियों का समाज में बहुत बड़ा स्थान है क्योंकि ये हमें वेदों के सिद्धांतों को व्यवहारिक रूप से जीवन में उतारने का मार्गदर्शन देती हैं। इससे समाज में अनुशासन, न्याय और धर्म का पालन होता है।

सारांश

1. स्मृति: स्मृतियाँ वेदों के व्यावहारिक रूप में रूपांतरित कृतियाँ हैं जो समाज के नियम, आचार और धार्मिक व्यवस्था को स्थापित करती हैं।

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