उपनिषद वेदों के अंतिम भाग हैं और इन्हें वेदांत (वेदों का अंत) भी कहा जाता है। इनका उद्देश्य वेदों के गूढ़ और दार्शनिक तत्वों को समझाना है। उपनिषद में ब्रह्म (परमात्मा) और आत्मा (व्यक्तिगत आत्मा) के संबंध को स्पष्ट किया गया है। उपनिषदों का दार्शनिक ज्ञान आत्मा की वास्तविकता, ब्रह्म के साथ उसकी एकता और मोक्ष की प्राप्ति के मार्ग पर आधारित है।
- आत्मा और ब्रह्म का अद्वितीय संबंध समझाना।
- जीवन का अंतिम उद्देश्य (मोक्ष) प्राप्त करना।
- शाश्वत सत्य और परम ज्ञान की प्राप्ति के मार्ग पर मार्गदर्शन करना।
- ध्यान, साधना और आत्मज्ञान के माध्यम से आत्मा की शुद्धि।
- अहम् ब्रह्मास्मि (मैं ब्रह्म हूँ): यह सिद्धांत आत्मा और ब्रह्म के अद्वितीयता को व्यक्त करता है।
- तत्त्वमसि (तुम वही हो): यह सिद्धांत हमें बताता है कि हम ब्रह्म का ही रूप हैं।
- नेति-नेति (यह नहीं, यह नहीं): यह सिद्धांत ब्रह्म के अस्तित्व को शब्दों से व्यक्त न करने की बात करता है।
1. उपनिषद: उपनिषद वेदों के गूढ़ और दार्शनिक हिस्से होते हैं, जो आत्मा और ब्रह्म के बीच अद्वितीय संबंध को प्रकट करते हैं और जीवन के शाश्वत सत्य को प्राप्त करने के मार्ग को स्पष्ट करते हैं।